पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाली इन राखियों को जिला पंचायत रायपुर की मदद से तैयार कराया जा रहा है। राखियों को बेचने की व्यवस्था भी विभाग कर रहा है। इसकी बुकिंग भी शुरू हो गई है। इन राखियों की बिक्री जितनी होगी महिलाओं की आमदनी भी उतनी ही बढ़ेगी।
ऐसा है राखी का स्वरूप, इनके बीज बनेंगे पौधे
राखी को तैयार करने के लिए महिलाएं बांस की पतली फत्तियों (बांस के पतले छिलके) को काटकर राखी का स्वरूप दे रही हैं। इन फत्तियों को चटख रंगों से रंगा गया है। इन पर करेला, नेनुआ, लौकी, कुम्हड़ा, टमाटर, राजमा के बीजों से सजावट की गई है। यह बीज लगभग एक वर्ष तक खराब नहीं होंगे। राखी में उपयोग हो रहे बीज किसानों के खेत से लिए जा रहे हैं। ऑर्गेनिक राखियां कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों की देखरेख में बनाई जा रही हैं। विश्वविद्यालय के किशोर कुमार का कहना है कि राखियां पर्यावरण के लिहाज से अच्छी हैं, साथ ही गांव की महिलाओं को भी रोजगार मिल गया है।
सात से लेकर पचास रुपये तक दाम
इन ऑर्गेनिक राखियों की कीमत सात से लेकर पचास रुपये तक रखी गई है। रक्षाबंधन से पहले जितनी राखियों की मांग आई, उसके हिसाब से राखियां तैयार की जाएंगी। फिलहाल 10 हजार राखियां बनाई जा रही हैं।
प्लास्टिक की राखियों का चलन ज्यादा
पिछले कुछ वर्षों से चीन से आने वाली प्लास्टिक की राखियों का बाजार पर कब्जा है। स्थानीय स्तर पर बनने वाली राखियां गायब हो गईं हैं। ऐसे में समूह के माध्यम से बनाई जा रहीं बीज और बांस की ऑर्गेनिक राखियां न केवल सस्ती होंगी, बल्कि पर्यावरण के लिए भी हितकर होंगी।
शुद्घ पर्यावरण के साथ रोजगार
बीज राखी से शुद्घ् पर्यावरण को बढ़ावा मिलेगा। पौधे तैयार होंगे साथ ही महिलाओं को रोजगार का मौका भी मिला है।
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