सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या ये दवा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. क्योंकि ये दवा बेहद सस्ती है, इसलिए इसके बाजार से जल्द खत्म होने की आशंका ज्यादा है.
मिनिसोटा यूनिवर्सिटी में फार्मास्यूटिकल रिसर्च इन मैनेजमेंट एंड इकोनॉमिक्स इंस्टीट्यूट के एक्सपर्ट स्टीफन शॉन्डेलमेयर ने कहा कि हो सकता है कई देश इस दवा को पर्याप्त मात्रा में बनाते हों लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इसकी कमी नहीं होगी.
स्टीफन ने कहा कि यह दवा सामान्य तौर पर उपलब्ध है. हमें अभी ही कई जगह से रिपोर्ट आई हैं कि डेक्सामिथेसोन जैसी कई अन्य कोरोना रोधी दवाओं की कमी है. लोग इन्हें अपने पास जमा कर रहे हैं, ताकि भविष्य की जरूरतों को पूरा कर सकें.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) में रेगुलेशन ऑफ मेडिसिन के प्रमुख एमर कुक ने भी अंदेशा जताया है कि हमें दुनियाभर से ये खबर आ रही हैं कि लोग इस दवा को जमा करना शुरू कर चुके हैं. इसकी वजह से कुछ दिन बाद बाजार में कमी आएगी. हालांकि ये कहना मुश्किल है कि दुनिया भर में इसकी कमी होगी. लेकिन कमी तो होगी।
अच्छी खबर ये है कि डेक्सामिथेसोन (Dexamethasone) का भारत में अकूत भंडार है. भारत से ये दवा 107 देशों में एक्सपोर्ट की जाती है. भारत में इस दवा के 20 ब्रांड्स मौजूद हैं. देश में इस दवा की 10 टैबलेट की स्ट्रिप मात्र 3 रुपए की आती है।
कोरोना वायरस के लिए रामबाण कही जा रही इस दवा को भारत ने 107 देशों में एक्सपोर्ट किया है. जो दवा एक्सपोर्ट की गई उसकी कीमत करीब 116.78 करोड़ है।
इस दवा का उपयोग रह्यूमेटिक बीमारी, त्वचा संबंधी बीमारियों, एलर्जी, दमा, क्रोनिक ऑब्सट्र्क्टिव लंग डिजीस, दांत और आंखों की सूजन के लिए किया जाता है. यह एक स्टेरॉयड है, जिसे डॉक्टरों की देखरेख मे मरीजों को दिया जाता है.
भारत में इस दवा को सबसे ज्यादा जाइडस कैडिला, वॉकहॉर्ट, कैडिला फार्मास्यूटिकल्स, जीएलएस फार्मा और वीथ लिमिटेड नाम की दवा कंपनियां बनाती हैं. अच्छी बात ये है कि ये दवा बेहद सस्ती है. इसकी दस गोलियां मात्र 3 रुपए में आती हैं. यानी 30 पैसे में एक टैबलेट.
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